रहस्यमयी हवेली का राज़
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में एक पुरानी हवेली थी। चारों ओर फैली ऊँची दीवारें, टूटी-फूटी खिड़कियाँ और जंग लगे गेट देखकर कोई भी समझ सकता था कि यह हवेली कई सालों से वीरान पड़ी है। स्थानीय लोग उसे “भूतिया हवेली”कहकर पुकारते थे। कहा जाता था कि रात के समय उस हवेली से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं—कभी किसी के रोने की, तो कभी किसी के हँसने की।
गाँव वाले डर के मारे वहाँ पास भी नहीं जाते थे। लेकिन 18 साल का अजय, जो कस्बे का सबसे जिज्ञासु लड़का था, इन अफवाहों पर विश्वास नहीं करता था। उसे हमेशा लगता कि लोग बेवजह डर फैलाते हैं। वह विज्ञान का विद्यार्थी था और तर्कों पर भरोसा करता था।
एक दिन उसने तय किया कि वह हवेली में जाकर सच्चाई पता लगाएगा।
हवेली की दहलीज़ पर
शाम का समय था, सूरज ढल चुका था और हल्की-हल्की धुंध छा रही थी। अजय अपने हाथ में टॉर्च और मोबाइल लेकर हवेली की ओर बढ़ा। गेट पर पहुँचते ही उसने देखा कि उस पर मोटी जंग लगी हुई है। गेट को धक्का देते ही वह चर्र-चर्र की आवाज़ करता हुआ खुला।
जैसे ही अजय अंदर पहुँचा, हवेली के आँगन में सूखे पत्तों की सरसराहट सुनाई दी। चारों ओर सन्नाटा था। हवा के झोंके से दरवाज़े और खिड़कियाँ **धड़ाम-धड़ाम** कर बंद हो रही थीं। लेकिन अजय बिना डरे आगे बढ़ता गया।
रहस्यमय आवाज़
अचानक उसे हवेली के अंदर से किसी स्त्री की धीमी-सी **रोने की आवाज़** सुनाई दी। अजय चौंक गया। उसने टॉर्च जलाकर आवाज़ की दिशा में कदम बढ़ाए। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसे लगा कि कोई उसके पीछे चल रहा है, लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर वहाँ कोई नहीं था।
कमरे में पहुँचने पर उसने देखा कि दीवारों पर पुराने चित्र टंगे थे। उनमें से एक चित्र में एक सुंदर औरत थी—लाल साड़ी, बड़ी-बड़ी आँखें और माथे पर लाल बिंदी। जैसे ही अजय ने टॉर्च उस चित्र पर डाली, उसे ऐसा लगा मानो वह स्त्री मुस्कुरा रही हो।
पुरानी डायरी
कमरे के कोने में एक लकड़ी की मेज़ रखी थी। उस पर धूल से ढकी एक मोटी डायरी पड़ी थी। अजय ने उसे खोला तो पहले पन्ने पर लिखा था—
“मैं सावित्री, इस हवेली की मालकिन। यह मेरी आख़िरी कहानी है…”
अजय तेज़ी से पढ़ने लगा। डायरी में लिखा था कि सावित्री अपने पति के साथ इस हवेली में रहती थी। लेकिन उसका पति लालची और निर्दयी था। उसे हवेली की संपत्ति चाहिए थी, इसलिए उसने सावित्री को मारने की साजिश रची। एक रात उसने हवेली के तहखाने में सावित्री को कैद कर दिया। सावित्री ने वहीं दम तोड़ दिया।
डायरी के आख़िरी पन्ने पर लिखा था—
**“जब तक मेरा सच दुनिया के सामने नहीं आएगा, मेरी आत्मा इस हवेली में भटकती रहेगी।”**
तहखाने की खोज
अजय का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसे एहसास हुआ कि हवेली में जो अजीब आवाज़ें आती हैं, वह सावित्री की आत्मा की हैं। लेकिन वह डरने के बजाय उसकी मदद करना चाहता था। उसने डायरी में दिए नक़्शे के आधार पर हवेली का तहखाना ढूँढा।
तहखाने का दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था। अंदर घुसते ही बदबू और अँधेरा छा गया। अचानक उसकी टॉर्च बंद हो गई। अजय ने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाई और देखा—दीवार पर जंजीरें लटकी थीं और फर्श पर खून के धब्बे जमे हुए थे। उसी पल उसे फिर वही रोने की आवाज़ सुनाई दी।
आत्मा का प्रकट होना
अजय ने धीमी आवाज़ में कहा,
“सावित्री जी, मैं आपकी मदद करने आया हूँ। आपका सच मैं सबके सामने लाऊँगा।”
इतना कहते ही उसके सामने धुंध का एक गोला बना और धीरे-धीरे उसमें एक औरत का चेहरा उभर आया। वही चेहरा जो तस्वीर में था। उसकी आँखों में आँसू थे, पर चेहरे पर एक हल्की मुस्कान।
आत्मा ने कहा—
“धन्यवाद बेटे, तुम पहले इंसान हो जिसने मुझे डरावनी कहानी नहीं समझा। मेरी आख़िरी इच्छा है कि मेरी लाश को सम्मान से दफनाया जाए और मेरा सच गाँव वालों तक पहुँचे।”
अजय ने हिम्मत जुटाकर तहखाने की मिट्टी खोदी। वहाँ उसे हड्डियों का ढेर मिला, जिन पर वही लाल साड़ी का फटा हुआ टुकड़ा पड़ा था।
सच का उजागर होना
अगले दिन अजय ने पुलिस को सब कुछ बताया। पुलिस ने हवेली की खुदाई कर सबूत निकाले और हवेली के मालिक—सावित्री के पति के वंशज—को कोर्ट में बुलाया। जाँच में साबित हुआ कि सचमुच सावित्री की हत्या लालच के लिए की गई थी।
गाँव वाले पहली बार समझ पाए कि हवेली में भूत नहीं, बल्कि एक **अन्याय की कहानी** छिपी थी। सावित्री की अस्थियों का अंतिम संस्कार विधि-विधान से किया गया।
उस रात अजय को सपना आया, जिसमें सावित्री मुस्कुराते हुए बोली—
“अब मैं मुक्त हूँ। धन्यवाद।”
उपसंहार
उसके बाद से हवेली में कोई अजीब आवाज़ नहीं आई। गाँव वाले भी वहाँ जाने लगे और उसे अब “सावित्री भवन” कहकर पुकारने लगे।
अजय ने यह अनुभव अपनी डायरी में लिखा और सोचा—
“भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती। हर रहस्य के पीछे एक सच्चाई छिपी होती है, बस उसे ढूँढने की हिम्मत चाहिए।”