किसान की संघर्षमयी और प्रेरणादायक कहानी

किसान की संघर्षमयी और प्रेरणादायक कहानी

किसान की संघर्षमयी और प्रेरणादायक कहानी

 

 किसान की संघर्षमयी और प्रेरणादायक कहानी


भारत को "कृषि प्रधान देश" कहा जाता है। यहाँ किसान केवल अन्नदाता ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की रीढ़ भी है। लेकिन उनकी ज़िंदगी में जितनी मेहनत और त्याग है, उतनी ही मुश्किलें भी हैं। यह कहानी एक ऐसे ही किसान गोपीनाथ की है, जिसने अपने संघर्ष, धैर्य और मेहनत से असंभव को संभव बना दिया।


 गाँव का किसान


उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव "बरुआ" में **गोपीनाथ** नाम का किसान रहता था। वह पढ़ाई-लिखाई में ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाया, लेकिन खेती-बाड़ी में उसका ज्ञान और लगन कमाल का था। उसके पिता भी किसान थे और खेती ही उनका पुश्तैनी काम था।


गोपीनाथ की ज़िंदगी बहुत साधारण थी – मिट्टी का घर, दो बैल, थोड़ी-सी ज़मीन और खेती ही उसकी दुनिया। लेकिन उसके मन में हमेशा एक सपना था कि उसकी खेती से इतनी आमदनी हो कि उसका परिवार सुखी जीवन जी सके।


 संकट की घड़ी


गोपीनाथ मेहनती था, पर लगातार कई सालों तक बारिश ठीक से नहीं हुई। फसलें सूख गईं। कई बार कीड़े लगने से फसल बर्बाद हो गई।


गाँव के कई किसान कर्ज़ में डूबकर अपनी ज़मीन बेचने लगे। गोपीनाथ भी परेशान था। उसके ऊपर बैंक और साहूकार दोनों का कर्ज़ था। पत्नी सुशीला अक्सर कहती –


“अब खेती छोड़ दो, कुछ और काम करो। देखो, लोग शहर जा रहे हैं मज़दूरी करने।”


लेकिन गोपीनाथ का जवाब हमेशा एक ही होता –

“नहीं सुशीला, मैं किसान हूँ और किसान का असली काम खेती है। मैं हार नहीं मानूँगा।”


 नई उम्मीद


एक दिन गाँव में कृषि अधिकारी आए। उन्होंने किसानों को आधुनिक खेती और नई तकनीकों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अगर किसान पुरानी पद्धति छोड़कर नई तकनीक अपनाएँ तो उत्पादन दोगुना हो सकता है।

गोपीनाथ ने ध्यान से सारी बातें सुनीं। उसने तय किया कि अब वह नई तकनीक अपनाएगा। उसने साहस जुटाकर हाई-यील्ड बीज खरीदे, खेत में ड्रिप इरिगेशन लगवाया और जैविक खाद बनाना शुरू किया।


गाँव के लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे –

“गोपीनाथ पागल हो गया है, इतना खर्चा करके खेती करेगा, कुछ नहीं होगा।”

लेकिन गोपीनाथ ने परवाह नहीं की।


 मेहनत का रंग


पहली बार जब उसकी फसल तैयार हुई, तो गाँव वाले देखकर हैरान रह गए। गेहूँ की बालियाँ भरपूर थीं, धान की फसल लहलहा रही थी और सब्जियों में अलग ही चमक थी।


मंडी में उसकी फसल का दाम अच्छा मिला। सालों बाद पहली बार उसके घर में खुशहाली आई। उसने कर्ज़ का एक बड़ा हिस्सा चुका दिया। पत्नी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।


गोपीनाथ ने कहा –

“देखा सुशीला, अगर हिम्मत न हारो तो किस्मत भी साथ देती है।”


 दूसरों के लिए मिसाल


गोपीनाथ की सफलता देखकर गाँव के दूसरे किसान भी उसकी राह पर चलने लगे। उन्होंने भी नई तकनीक अपनाई, जैविक खाद बनाई और बाजार से सीधा संपर्क किया।


अब गाँव की तस्वीर बदलने लगी थी। किसान आत्मनिर्भर बनने लगे थे। गाँव में सहकारी समिति बनी और किसान मिलकर मंडी में अपनी फसल बेचने लगे।


गोपीनाथ अब सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि गाँव के प्रेरणास्त्रोत बन गए।


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 बड़ी उपलब्धि


कुछ सालों बाद गोपीनाथ की मेहनत और लगन की चर्चा ज़िला स्तर पर होने लगी। कृषि विभाग ने उन्हें "श्रेष्ठ किसान पुरस्कार" से सम्मानित किया।


पुरस्कार लेते समय गोपीनाथ ने कहा –

“यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि हर उस किसान का है जो कठिनाइयों में भी हिम्मत नहीं हारता। खेती भगवान का काम है, क्योंकि किसान ही धरती माँ से अन्न उपजाता है।”


बेटे का सपना


गोपीनाथ का बेटा रवि पढ़ाई में होशियार था। वह चाहता था कि पढ़ाई करके कृषि वैज्ञानिक बने, ताकि किसानों की मदद कर सके।


गोपीनाथ ने बेटे को पूरी तरह पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। रवि ने मेहनत करके कृषि विज्ञान की पढ़ाई की और वैज्ञानिक बन गया। अब वह नई तकनीक गाँव-गाँव जाकर किसानों तक पहुँचाता था।


गोपीनाथ गर्व से कहता –

“अब मेरा बेटा किसानों के लिए काम करेगा। यही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।”


यह कहानी बताती है कि **किसान कभी हार नहीं मानता**। चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, मेहनत, धैर्य और नई सोच से सफलता पाई जा सकती है।


गोपीनाथ की तरह हर किसान अगर हार न माने, तो भारत का हर गाँव खुशहाल बन सकता है।


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