मिट्टी से उठती रोशनी
(गाँव के गरीब बच्चे की कहानी)
भारत के गाँवों में लाखों बच्चे रहते हैं। जिनके सपने तो बहुत बड़े होते हैं, लेकिन हालात अक्सर उनके पंख काट देते हैं। गरीबी, अभाव और कठिनाइयाँ उनके रास्ते में दीवार खड़ी करती हैं। लेकिन वही बच्चे इतिहास रचते हैं, जो दीवारों को सीढ़ी बना देते हैं।
यह कहानी है सूरज की, जो एक छोटे से गाँव का गरीब बच्चा था। उसके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं थे, खाने के लिए भरपेट रोटी नहीं थी, लेकिन सपनों को पूरा करने की आग उसके भीतर जलती रहती थी।
पहला अध्याय – गाँव का छोटा सूरज
सूरज का जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव “सुपौल” में हुआ था। पिता मजदूरी करते थे और माँ खेतों में काम करके कुछ पैसे कमा लेती थीं। घर मिट्टी का था, छप्पर से बारिश टपकती थी और अक्सर रातों को भूखा सोना पड़ता था।
सूरज स्कूल जाता था, लेकिन उसके पास जूते नहीं थे। वह नंगे पाँव ही तीन किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुँचता। कई बार रास्ते में लोग हँसते –
“अरे देखो, बिना चप्पल का मास्टर बनने चला है।”
लेकिन सूरज मुस्कुराकर कहता –
“एक दिन यही पैर मुझे उस जगह ले जाएंगे, जहाँ तक तुम सोच भी नहीं पाओगे।”
दूसरा अध्याय – भूख और किताबें
घर की गरीबी इतनी थी कि कई बार माँ उसे आधा पेट ही खाना देती। सूरज पूछता –
“अम्मा, आप क्यों नहीं खातीं?”
माँ मुस्कुराकर कहती –
“बेटा, मैं तो पेट भर खा चुकी हूँ। तू पढ़ ले।”
माँ जानती थी कि अगर बेटा पढ़-लिख गया तो उसकी ज़िंदगी बदल जाएगी।
सूरज को किताबों से बहुत लगाव था। स्कूल के मास्टरजी उसे पुराने अखबार और किताबें देते, जिन्हें वह रात में मिट्टी के दीपक की रोशनी में पढ़ता।
तीसरा अध्याय – सपनों की आग
गाँव के बच्चे जब खेलते-कूदते, सूरज खेत के किनारे बैठकर पढ़ाई करता। उसका सपना था कि वह बड़ा होकर **अफसर बने** और अपने गाँव की तस्वीर बदल दे।
लेकिन हालात आसान नहीं थे। कई बार पिता कहते –
“बेटा, पढ़ाई छोड़कर काम कर ले। घर में खाने को नहीं है।”
सूरज हाथ जोड़कर कहता –
“बाबा, मुझे बस एक मौका दे दो। मैं पढ़ाई से ही हमारी ज़िंदगी बदलूँगा।”
चौथा अध्याय – संघर्ष की राह
कक्षा 8 में पहुँचते ही सूरज को पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करना पड़ा। वह सुबह अखबार बाँटता, दिन में स्कूल जाता और शाम को खेत में मजदूरी करता। रात को थककर चूर हो जाता, लेकिन फिर भी किताबें खोलकर बैठ जाता।
उसके दोस्त हँसते –
“इतनी मेहनत करके भी तू क्या कर लेगा?”
सूरज आत्मविश्वास से कहता –
“आज जो मैं सह रहा हूँ, वही कल मेरी ताक़त बनेगा।”
पाँचवाँ अध्याय – पहला इम्तिहान
सूरज ने कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा दी। उसने दिन-रात मेहनत की। जब रिज़ल्ट आया तो पूरे गाँव में हलचल मच गई। सूरज ने जिले में टॉप किया।
गाँव वाले हैरान थे –
“अरे, यह वही गरीब सूरज है, जिसके पास चप्पल तक नहीं हैं? यह तो कमाल कर गया।”
मास्टरजी ने गाँव के चौपाल में कहा –
“गरीबी इंसान को रोक नहीं सकती, अगर उसके अंदर सपनों की आग हो।”
छठा अध्याय – नई मंज़िल
अब सूरज का सपना था कि वह **IAS अफसर** बने। लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पैसे नहीं थे। उसने ठान लिया कि वह खुद से तैयारी करेगा।
वह सरकारी पुस्तकालय में बैठकर घंटों पढ़ता। पुराने नोट्स, अखबार और मुफ्त ऑनलाइन लेक्चर उसकी पढ़ाई के साथी बने।
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## सातवाँ अध्याय – समाज के ताने
गाँव में लोग ताना मारते –
“अरे, IAS बनेगा? ये तो दिवास्वप्न देख रहा है।”
लेकिन सूरज चुपचाप मुस्कुराता और मन ही मन कहता –
“आज हँस लो, कल मेरे नाम पर ताली बजाओगे।”
आठवाँ अध्याय – सफलता की सुबह
कई साल की मेहनत के बाद आखिरकार सूरज ने UPSC की परीक्षा दी। रिज़ल्ट वाले दिन पूरे गाँव की साँसें थमी थीं।
जब पता चला कि सूरज का चयन हुआ है और वह IAS अफसर बन गया है, तो गाँव खुशी से झूम उठा। लोग ढोल-नगाड़े लेकर उसके घर पहुँचे।
पिता की आँखों में आँसू थे। माँ ने उसे गले लगाते हुए कहा –
“बेटा, तूने हमारी भूख, गरीबी और संघर्ष को जीत में बदल दिया।”
सूरज की यह कहानी हमें सिखाती है कि गरीबी सपनों की राह में बाधा नहीं, बल्कि ताक़त बन सकती है अगर इंसान ठान ले और मेहनत करे, तो हालात उसके सामने झुक जाते हैं।
सूरज जैसे बच्चे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, पढ़ाई और लगन से हम अपनी ज़िंदगी बदल सकते हैं।
